कविता (छंदमुक्त)
शीर्षक : बवाल
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बदल गया था दुनिया से रूबरू होकर,अगर अपने ही गुरूर में होता तो सोचो कितना बवाल होता।
मै, मै नहीं रहा शायद किसी वजह से,
अगर मै, मै ही रहता तो सोचो कितना बवाल होता।
किसी साथ का इतंजार था शायद,
अगर इंतजार ना होता तो सोचो कितना बवाल होता।
रुक गया था कहीं, किसी डगर पर,
अगर वक़्त का ठहराव ना होता तो सोचो कितना बवाल होता।
जिम्मेदारियां कहूं या बहाना वक़्त का,
अगर जिम्मेदार ना होता तो सोचो कितना बवाल होता।
हाहाकार मचाने को तो एक चिंगारी ही काफी है,
अगर मेरे दिल का इलाज ना होता तो सोचो कितना बवाल होता।
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~ वैधविक
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