रुख़सत नही हुई उसकी यादें, उसकी तरह,शायद किरायेदार का किराया अभी बाकी है.../ अशआर



मामूली अशआर : 
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रुख़सत नही हुई उसकी यादें, उसकी तरह,
शायद किरायेदार का किराया अभी बाकी है।

हुस्न का महफ़िल सजा है, मकान की तरह,
शायद उसका वर और बारात अभी बाकी है।

कोई वजह तो नही दी थी उसने, इनकार की,
शायद उसके ज़ेहन में कुछ याद अभी बाकी है।

बेक़सूर सुनना चाहती है, वो अपने आप को,
शायद उसकी गुस्ताखी की अदा अभी बाकी है।  

कोई लय, लहजा, तहजीब नही अब मुझमें,
शायद उसकी कोई बात दिल पर अभी बाकी है। 

दिल तेजी से धड़कता है,आज भी उसे सुनकर,
शायद दिल में उसके निशान अभी बाकी है। 

कुछ कहूं उसको या रहने दू, कुछ सोचकर,
शायद दिल में दबे कुछ जज्बात अभी बाकी है। 

वो आज भी रहती है मशगूल, इश्क़ के खातिर,
शायद उसके कुछ और इश्कजादे अभी बाकी है।


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