भटकते राहों से गुजरने की, जरूरत ही क्या है.../ अशआर


अशआर (बहरमुक्त)

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भटकते राहों से गुजरने की, जरूरत ही क्या है,
खुद को मुसाफिरों से मिलाने की जरूरत ही क्या है।

वो भी मशगूल है अपनी जिन्दगी में, और तुम भी,
फिर उनको क़सूर मिटाने की जरूरत ही क्या है।

खुद को बेक़सूर समझ कर जी रहे है तो जीने दो,
याद तुम्हे भी आती है जताने की जरूरत ही क्या है।

इक दिन ख़ुद याद करेंगे जरूरत पड़ने पर सभी
फिर उनको याद दिलाने की जरूरत ही क्या है।

तुम जो बाहर से हो, वही अंदर से भी हो, 'वैधविक'
चल छोड़ यार! सबको बताने की जरूरत ही क्या है।
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~ वैधविक 

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