उसकी नजरें थी कहीं, समझा अपनी ओर.../ कविता (दोहा छंद)



कविता (दोहा छंद)
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बाल घुंघराले रखें, आंखे नीली घोर।
दिलकश मंज़र देख कर, नाचे सारे मोर।।

नाचे सारे मोर जब, हुआ तभी था भोर।
उसकी नजरें थी कहीं, समझा अपनी ओर।।

समझा अपनी ओर था,जब भी उसकी राह।
छूट गया सब बीच में, होकर बेपरवाह।।

होकर बेपरवाह फिर, काम हुए बेकार।
नौकरी भी नही बची, हुए बेरोजगार।।

हुए बेरोजगार जब, सोचा फिर व्यापार।
ज्यों ही कामकाज बड़ा, त्यों ही उसका प्यार।।
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~ वैधविक

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