गीतिका (लावणी छंद)
जीवन की मैं व्यथा सुना दूं, इतना अब आसान नहीं।
क्या है जीवन तुम्हे बता दूं, इतना मुझमें ज्ञान नहीं।।
चलता ही रहता हूं पग पर, कुछ पाना कुछ खोना है।
अब चलता ही रहूं सदा मैं, इतना मैं गतिमान नहीं।।
रुकना तो पड़ता है सबको, है जीवन का यही नियम।
मिले सदा ही खुशियाँ तुमको, ऐसा कहीं विधान नहीं।।
तू बस अपनी हिम्मत रखना, पा लेगा तू भी फिर सब।
हार जीत चलती रहती है, इसमें कुछ अपमान नहीं।।
हार सदा ही होता अवसर, इतना है बस समझाना।
नित ही बस अब तू जीतेगा, इतना तू बलवान नहीं।।
~ वैधविक
Good
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