कोरोना काल का ये संकट, नित जन मन सब प्राण गवाएं.../ कविता (छंदमुक्त)



कविता (छंदमुक्त)
शीर्षक : संकट
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कोरोना काल का ये संकट, 
नित जन मन सब प्राण गवाएं।

चारो ओर घटा छायी है, 
लगत विपत्ति सकल आयी है। 

समुन्दर ने उफान भरा है,
जल क्या है सिखाने खड़ा है।

बिजली भी थर थर करती है,
संकेत संकट सकल देती है।

चारो ओर पाप छाया है,
छल कपट जन गण पाया है।

कोरोना में सब कुछ लुप्त है,
घर में है, बाजार सुस्त है। 

कुटुंब विपत्ति में, हर जाए,
हर घड़ी कोई प्राण गवाए।

चारो ओर बस कोहराम है,
डर भय त्रास ही बस आम है।

लगत है महाकाल अड़े है, 
कालचक्र को रोके खड़े है।

जगत में बस अधर्म बड़ा है,
सद्कर्म आज कहा खड़ा है।

द्वेष, छल से भरे हैं मानुष,
जीते जी भी मरे हैं मानुष। 

'वैधविक' तू भी राम नाम जप,
हो सके तो हर वक्त कर तप।
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~ वैधविक


कोरोना महामारी के समय लिखी गई एक रचना : 

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